दैहिक स्वतंत्रता (Daihik Swatantrata) क्या है?

(A) भारत के राज्य-क्षेत्र के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को तर्कसंगत आधार के बिना उसकी दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित रखने का प्राधिकार राज्य के पास नहीं है।
(B) किसी व्यक्ति को उसकी दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित रखने का आधार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही होना चाहिए।
(C) दैहिक स्वतन्त्रता को न्यायिक बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है।
(D) एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से ‘विधि की सम्यक् प्रक्रिया’ को गढ़ा।

Answer : किसी व्यक्ति को उसकी दैहिक स्वतंत्रता से वंचित रखने का आधार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही होना चाहिए।

Explanation : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में यह घोषणा की गई है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं। प्रसिद्ध एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले (1950) में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद-21 के तहत् केवल मनमानी कार्यकारी प्रक्रिया के विरुद्ध सुरक्षा उपलब्ध है न कि विधानमंडलीय प्रक्रिया के विरुद्ध की व्यवस्था की। लेकिन मेनका मामले (1978) में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद-21 के तहत् गोपालन मामले में अपने फैसले को पलटते हुए यह व्यवस्था दी कि प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को उचित एवं न्यायपूर्ण मामले के आधार पर रोका जा सकता है। इसके प्रभाव में अनुच्छेद-21 के तहत् सुरक्षा केवल मनमानी कार्यकारी क्रिया पर ही उपलब्ध नहीं, बल्कि विधानमंडलीय क्रिया के विरुद्ध भी उपलब्ध है।
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Web Title : Daihik Swatantrata Kya Hai