उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत का अर्थ

(A) भाग्य का उल्लड़्घन नहीं किया जा सकता।
(B) बड़ों की आज्ञा विचारणीय नहीं होती।
(C) हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों को पाकर उनके द्वारा परब्रह्म परमेश्वर को जान लो।
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer : हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों को पाकर उनके द्वारा परब्रह्म परमेश्वर को जान लो।

Explanation : संस्कृत सूक्ति 'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' का हिंदी में अर्थ– हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों को पाकर उनके द्वारा परब्रह्म परमेश्वर को जान लो। संस्कृत की यह सूक्ति कठोपनिषद् से ली गई है। State TET, CTET, TGT, PGT आदि परीक्षाओं के लिए कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्कृत सूक्तियां हिंदी में अर्थ सहित पढ़े–
अनुलड़्घनीय: सदाचार: (वेणीसंहार अड़्क-5)
हिंदी में अर्थ– सदाचार का उल्लड़्घन नहीं करना चाहिए।

'अनतिक्रमणीयो हि विधि:।' (स्वप्नवासवदत्म्)
हिंदी में अर्थ– भाग्य का उल्लड़्घन नहीं किया जा सकता।

रक्षितव्या खलु प्रकृतिपेलवा प्रियसखी (अभिज्ञान शाकुन्तलम् अड़्क-4)
हिंदी में अर्थ– अनसूया प्रियवंदा से कहती है– स्वभाव से ही कोमल प्रियसखी की रक्षा करनी चाहिए।
Tags : संस्कृत संस्कृत सूक्ति
Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams
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Web Title : Uttishthat Jagrat Prapya Varannibodhat