भूषण बिनु न विराजई कविता वनिता मीत किसका कथन है?

(A) तुलसीदास
(B) भिखारीदास
(C) केशवदास
(D) मतिराम

Answer : केशवदास

Explanation : भूषण बिनु न विराजई कविता वनिता मीत कथन केशवदास का है। यह उक्ति काव्य में अलंकार के महत्व पर आचार्य केशवदास की है। केशवदास की रचना 'कविप्रिया' इस युक्ति को चरितार्थ करती है। यही कारण है कि कविवर बिहारी ने 'कविप्रिया' का इतना विशिष्ट अध्ययन किया था कि इस कृति का प्रभाव उनके कवि मानस पटल पर कई प्रकार से पड़ा है। यह भी कहना असंगत तथ्य नहीं होगा कि 'कवि प्रिया' के भाव, शब्द और प्रयोजन सभी कुछ कविवर बिहारी की सतसई पर विस्तृत रूप में दिखाई देते हैं। उदाहरणार्थ
केशवदास - "राधा केशव कुँवर की बाधा हरहु प्रवीन ।
नेकु सुनावहु करि कृपा, शोभत बीन प्रवीन॥" बिहारी - "मेरी भव-बाधा हरै, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झॉई परै, श्याम हरित दुति होई॥"
Tags : सामान्य हिन्दी प्रश्नोत्तरी
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Web Title : Bhushan Binu Na Viraji Kavita Vanita Meet Kiska Kathan Hai