कौड़ी नहीं गांठ, चले बाग की सैर का अर्थ और वाक्य प्रयोग

(A) अपने मरने के बाद प्रलय ही क्यों न आये
(B) स्वार्थ छोड़ने से ही परमार्थ होता हैं।
(C) बिना कारण मुसीबत मोल लेना
(D) सामर्थ्य न होने पर भी कोई काम करना

Answer : सामर्थ्य न होने पर भी कोई काम करना

Explanation : कौड़ी नहीं गांठ, चले बाग की सैर का अर्थ kaudi nahi ganth, chale baag ki sair है 'सामर्थ्य न होने पर भी कोई काम करना।' हिंदी लोकोक्ति कौड़ी नहीं गांठ, चले बाग की सैर का वाक्य में प्रयोग होगा – हालांकि गंगा पाण्डेय की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे अपने पुत्र के विवाह उपरान्त बहूभोज आयोजित कर सकते, लेकिन समाज में झूठी शान दिखाने के लिए खेत बेचकर उनका आडम्बर के साथ बहूभोज आयोजित करना 'कौड़ी नहीं गांठ, चले बाग की सैर' वाली कहावत चरितार्थ करती है। हिन्दी मुहावरे और लोकोक्तियाँ में 'कौड़ी नहीं गांठ, चले बाग की सैर' जैसे मुहावरे कई प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, बी.एड., सब-इंस्पेटर, बैंक भर्ती परीक्षा, समूह 'ग' सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होते है।
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Useful for : UPSC, State PSC, SSC, Railway, NTSE, TET, BEd, Sub-inspector Exams
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Web Title : Kaudi Nahi Ganth Chale Baag Ki Sair