निर्वाण की अवधारणा की सर्वप्रथम व्याख्या कौन सा मत करता है?

(A) तृष्णारूपी अग्रि का शमन
(B) स्वयं की पूर्णतः अस्तित्वहीनता
(C) परमानंद एवं विश्राम की स्थिति
(D) धारणातीत मानसिक अवस्था

Answer : तृष्णारूपी अग्रि का शमन

Explanation : निर्वाण की अवधारणा की सर्वप्रथम व्याख्या भगवान बुद्ध ने की थी (566-486 BC)। भगवान बुद्ध केवल मात्र 35 साल के उम्र में एक ज्ञानमय प्रबुद्ध अवस्था में पहुँचे थे जहाँ उन्हें परम सत्य का ज्ञान हुआ था। 'निर्वाण' शब्द का अर्थ है 'बुझ जाना' अर्थात् लोभ का बुझ जाना, घृणा का बुझ जाना, सांसारिक माया मोह के बुझ जाने का संकेत है। मन और भावनाओं से इन विकारों का जब अंत होता है तब ज्ञान बुद्धि उजागर होती है, क्योंकि मन या मस्तिष्क तब मुक्त है, आनन्दित है। जिसने भी इस सत्य को जाना है, वह इस संसार में सबसे सुखी है।

वह समस्त विकारों से दूर, समस्त आसक्तियों से परे, निश्चिंत, शंकारहित है। उसकी मानसिक स्थिति उत्तम है। उसे बीते हुए कल को लेकर कोई पश्चाताप नहीं है। वह आने वाले कल को लेकर भी आशंकित नहीं है, वह तो केवल वर्तमान में जीता है। वह जीवन के हर क्षण का आनंद लेता है। वह 'मैं' से मुक्त है। उसमें 'आत्मभ्रम' जैसी कोई तृष्णा नहीं है। उसने परमानंद को अनुभव किया है।
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Web Title : Nirvan Ki Avdharna Ka Sarvapratham Vyakhya Kaun Sa Mat Karta Hai