अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ: का अर्थ

(A) मनु के वंश में उत्प्न्न राजा लोग अपने ही पराक्रम से आत्मरक्षा कर लेते थे।
(B) राजकुमार चंद्रापीड अपने स्थान को लौटने का अनुरोध कर रहे हैं।
(C) अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं।
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer : अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं।

Explanation : संस्कृत सूक्ति 'अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:' का हिंदी में अर्थ– अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं। संस्कृत की यह सूक्ति वा​ल्मीकि रामायण 6.16.21 से ली गई है। State TET, CTET, TGT, PGT आदि परीक्षाओं के लिए कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्कृत सूक्तियां हिंदी में अर्थ सहित पढ़े–
अप्रार्थितानुकूल: मन्मथ: प्रकटीकरिष्यति। (कादंबरी/चंद्रापीडकथा)
हिंदी में अर्थ– बिना प्रार्थना किये ही मेरे प्रति अनुकूल हो जाने वाला कामदेव शीघ्र ही उसे प्रकट कर देगा। ऐसा कादंबरी के अनुराग के कारणों के विषय में चंद्रापीड कहता है।

अनाथपरिपालनं हि धर्मः अस्मद्विधानम्। (कादंबरी/चंद्रापीडकथा)
हिंदी में अर्थ– पिंजड़े में स्थित वैशम्पायन तोते ने शूद्रक को बताया कि मुनिकुमार हारीत मुझे जाबालि के आश्रम में ले गया और आश्रम के मुनियों के पूंछने पर मेरे विषय में इस प्रकार बताया– 'हमारे जैसे लोगों का धर्म ही अनाथों (शुक) का पालन करना है।'
Tags : संस्कृत
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Web Title : Apriyasy Ch Pathyasy Vakta Shrota Ch Durlabh