‘अतिथि देवो भव’ का अर्थ

(A) मित्र के प्राणों की रक्षा हर प्रकार से करनी चाहिए।
(B) कण्व का कथन– पुत्रवत् पाला हुआ मृग तेरा मार्ग नहीं छोड़ रहा है।
(C) अतिथि देव स्वरूप होता है।
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer : अतिथि देव स्वरूप होता है।

Explanation : संस्कृत सूक्ति 'अतिथि देवो भव' का हिंदी में अर्थ– अतिथि देव स्वरूप होता है। संस्कृत की यह सूक्ति तैत्तिरीयोपनिषद् 1/11/12 से ली गई है। State TET, CTET, TGT, PGT आदि परीक्षाओं के लिए कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्कृत सूक्तियां हिंदी में अर्थ सहित पढ़े–
अपुत्राणां न सन्ति लोकाशुभा:। (कादंबरी/चंद्रापीडकथा)
हिंदी में अर्थ– जिन दम्पतियों को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है उन्हें लोक शुभ नहीं होते।

अतिगर्हितेन अकृत्येनापि रक्षणीयान् सुहृदसून् मन्यते साधव:। (कादंबरी/चंद्रापीडकथा)
अर्थ– साधु प्रकृति के लोग अत्यन्त निन्दनीय बुरे कर्मों के द्वारा भी मित्र के प्राणों की रक्षा करना उचित मानते हैं।
Tags : संस्कृत संस्कृत सूक्ति
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Web Title : Atithi Devo Bhava