योग: कर्मसु कौशलम् का अर्थ

(A) अत्यधिक आदर किया जाना शड़्कनीय है।
(B) परस्त्री के विषय में बात करना अशिष्टता है।
(C) समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्मबन्धन से छूटने का उपाय है।
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer : समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्मबन्धन से छूटने का उपाय है।

Explanation : संस्कृत सूक्ति 'योग: कर्मसु कौशलम्' का हिंदी में अर्थ– समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात् कर्मबन्धन से छूटने का उपाय है। संस्कृत की यह सूक्ति गीता 2/50 से ली गई है। State TET, CTET, TGT, PGT आदि परीक्षाओं के लिए कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्कृत सूक्तियां हिंदी में अर्थ सहित पढ़े–
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्। (नीतिशतकम्)
हिंदी में अर्थ– छाया के समान दुर्जनों और सज्जनों की मित्रता होती है।

तीर्थोदकंक च वह्निश्च नान्यत: शुद्धिमर्हत:। (उत्तररामचरितम् 1/13)
हिंदी में अर्थ– तीर्थ जल और अग्नि से अन्य पदार्थ से शुद्धि के योग्य नहीं होते हैं।

सत्सड़्गति: कथन किं न करोति पुंसाम् (नीतिशतकम्)
हिंदी में अर्थ– सत्संगति मनुष्यों की कौन-सी भलाई नहीं करती।
Tags : संस्कृत संस्कृत सूक्ति
Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams
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Web Title : Yogah Karmasu Kaushalam